तेरे होठों पे मेरे नाम का फूल खिल जाए
तो कहाँ जायेगा मेरा ध्यान इस जहां की तरफ
फिर चाहे मेरे हाथ से ये मंजिल जाए
कदम खुद चल पड़ेंगे तेरे इक सदा की तरफ

मुझे याद है वो सब तेरी यादों की कसम
वो इक अदा से हँस के मेरा नाम लेना
वो सख्त राहों पे जब लडखडाते थे कदम
मई साथ हूँ ये कह के हाथ थाम लेना

मैं कैसे मान लूँ की अब तू मेरे साथ नहीं
तू जब तब छू जाए मुझे हवाओं की तरह
क्या हुआ जो अब इन हाथो में वो हाथ नहीं
तेरी यादें तो मेरे साथ हैं दुआओं की तरह

तू मुझे भूलने की दुआ भी करे , ऐ यार
तो भी मुझे ज़माने भर की ख़ुशी मिल जाए
की वो दुआ करने में ही सही , ‘मितवा’ फिर इक बार
तेरे होठों पे मेरे नाम का फूल खिल जाए

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