शुक्रगुजार हूँ मैं दिल की गहराई से
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चाहे जब, चाहे जहाँ पर चले आते हैं आंसू
कोई अपना रूठ गया है, यह बताते हैं आंसू
दिल में बसे कृष्ण मगर मिल नहीं पाये तो
मीरा के होठों पर गीत बनकर
गाते हैं आंसू
मुस्कुराकर छिपाना चाहूँ तो गम नहीं छिपता
बड़े बेरहम हैं, झूठ से परदा हटाते हैं आंसू
ये हैं तो लगता है कि ‘वो’ साथ है हर पल
दिल को रेगिस्तान होने से बचाते हैं आंसू
हर आह के साथ निकलता रहा उनका नाम
मेरे साथ सुर मिलाकर गुनगुनाते हैं आंसू
जिसे साथ रहना था वो तो नहीं रहा मगर
‘उसका’ साया बनकर साथ निभाते हैं आंसू
शुक्रगुजार हूँ मैं दिल की गहराई से ‘मधु’
बिछड़ने के बाद प्यार और बढ़ाते हैं आंसू

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