हक़ीक़त ना सही तुम ख़्वाब की तरह मिला करों
भटके हुएँ मुसाफिर को चांदनी रात की तरह मिला करो !

बर्बाद होगा ये गरीब दोनों पहलूँ में
मेरे कच्चे घर पर तुम बरसात की तरह मिला करों !

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