बुलंदी देर तक किस शख्स के हिस्से में रहती है,
बहुत ऊँची इमारत हर घड़ी खतरे में रहती है,
बहुत जी चाहता है कैद ए जाँ से हम निकल जायें,
तुम्हारी याद भी लेकिन इसी मलबे में रहती है…
-मुनव्वर राना

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