​यदि कबीर जिन्दा होते तो आजकल के दोहे यह होते:

नयी सदी से मिल रही, दर्द भरी सौगात;

बेटा कहता बाप से, तेरी क्या औकात;

पानी आँखों का मरा, मरी शर्म औ लाज;

कहे बहू अब सास से, घर में मेरा राज;

भाई भी करता नहीं, भाई पर विश्वास;

बहन पराई हो गयी, साली खासमखास;

मंदिर में पूजा करें, घर में करें कलेश;

बापू तो बोझा लगे, पत्थर लगे गणेश;

बचे कहाँ अब शेष हैं, दया, धरम, ईमान;

पत्थर के भगवान हैं, पत्थर दिल इंसान;

पत्थर के भगवान को, लगते छप्पन भोग;

मर जाते फुटपाथ पर, भूखे, प्यासे लोग;

फैला है पाखंड का, अन्धकार सब ओर;

पापी करते जागरण, मचा-मचा कर शोर;

पहन मुखौटा धरम का, करते दिन भर पाप;

भंडारे करते फिरें, घर में भूखा बाप।

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