*तज़ुर्बा बता रहा हूँ दोस्त, दर्द, ग़म,* *डर जो भी है बस तेरे अंदर* *है !*
*खुद के बनाए पिंजरे से निकल के* *देख…तू भी एक सिकंदर है.*
*तज़ुर्बा बता रहा हूँ दोस्त, दर्द, ग़म,* *डर जो भी है बस तेरे अंदर* *है !*
*खुद के बनाए पिंजरे से निकल के* *देख…तू भी एक सिकंदर है.*