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“दीदार की ‘तलब’ हो तो नज़रे जमाये रखना ‘ग़ालिब’
क्यूंकि ‘नकाब’ हो या ‘नसीब’…..सरकता जरुर है.”

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रफ़्तार कुछ इस कदर तेज है जिन्दगी की..
कि सुबह का दर्द शाम को पुराना हो जाता है..

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जरूरी नहीं रौशनी चिरागों से ही हो.
बेटियाँ भी घर मैं उजाला करती हैं.. !!

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मुझे कुछ अफ़सोस नहीं कि मेरे पास सब कुछ होना चाहिए था ।
मैं उस वक़्त भी मुस्कुराता था जब मुझे रोना चाहिए था ।

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अभी सूरज नहीं डूबा ज़रा सी शाम होने दो”
मैं खुद लौट जाऊँगा मुझे नाकाम होने दो”

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मुझे बदनाम करने का बहाना ढूँढ़ते हो क्यों”
मैं खुद हो जाऊंगा बदनाम पहले नाम होने दो..

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प्यार मैं कोई तो दिल तोड देता है।
दोस्ती मेँ कोई तो भरोसा तोड़ देता है।
जिन्दगी जीना तो कोई गुलाब से सीखे।
जो खुद टूट कर दो दिलों को जोड़ देता है।

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पानी दरिया में हो या आँखों में गहराई और राज़ दोनों में होते हैं!!

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बुलंदियों पर पहुँच कर गुरुर ना करना
सफ़र की ढलान
अभी बाकी है ….!

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घर के सामने वाले पेड़ पर एक “गिरगिट” ने आत्महत्या कर ली है।
सुसाइड नोट में लिखा है……
“मैं आजकल इन्सानों का मुक़ाबला नहीं कर पा रहा हूँ …….
रंग बदलने में”……

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मुझे मालूम है कि ये ख्वाब झूठे हैं और ख्वाहिशे अधूरी हैं..
मगर जिंदा रहने के लिए कुछ गलतफहमियां जरूरी हैं।

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कौन कहता है कि मुसाफिर ज़ख़्मी नहीं होते
रास्ते गवाह हैं बस कमबख्त गवाही नहीं देते ।।


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